मुझे याद आते है
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मेरा मौन समर्पण
आज तुम्हे देता निमंत्रण
भाव श्रंखला लिपटी है बेडी बनकर,
मेरा मौन समर्पण आज तुम्हे देता निमंत्रण
जी करता है दौड़ जाऊ पवन बनकर
या बन जाऊ टुकड़ा बादल का
लहराऊ तेरे आँचल सा
लिपट जाऊ तेरे कदमो से
मगर…….
अनजानी सी एक जंजीर
लिपटी है बेडी बनकर
तोड़ दो तुम इस जंजीर को
जी करता है कर दू तुम पर
अपना सब कुछ अर्पण
और मेरा मौन मेरा मौन समर्पण
आज तुम्हे देता निमंत्रण
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