मुझे याद आते है
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इन गहरे गहरे नयनों फिर आज निराशा क्यूँ !!
कोई जला गया था आशा के दीप ..
तुमने आज फिर बुझाया क्यूँ !!
इन गहरे गहरे नयनो में फिर आज निराशा क्यूँ
अजनबी राहों के अनजाने मीत
हाथ थाम बढ चले थे मंजिल की ओर!!,
साथी थे तुम मंजिल तक के
पर अनजानी डगर पर तनहा छोड़ चले क्यूँ
इन गहरे गहरे नयनों फिर आज निराशा क्यूँ !!
कोमल की कल्पना आज सम्मित चितवन से ओझल क्यूँ
कोई शिकवा नहीं मुझे तुमसे
फिर होंठों पर कम्पन आँखों में गवाही क्यों
इन गहरे गहरे नयनों फिर आज निराशा क्यूँ
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