घडी देखी सुबह के पांच बजे थे ,सोचा थोड़ी देर और सो लू ..कोशिश तो बहुत की पर विचार ज्यादा हावी होते चले गए !शरीर थकान से टूट रहा था !रात के तीन बजे तक पतिदेव के दोस्तों की आवभगत करते करते उन्हें खाना खिलकर विदा करते रात के 2 बज गए थे उनके जाने के बाद सब जितनी हिम्मत थी समेत कर बिस्तर पर गिर गई !दूध वाला आता ही होगा और फिर पीने का पानी भी केवल आधा घंटा ही आएगा वो भी मुश्किल है!गुडिया को स्कूल के लिए तैयार करना है फिर सब काम निपटा कर खुद भी ऑफिस जाना है .पतिदेव को बहुत समझाया था कि दोस्तों को पदौन्नति की दावत देनी हो शनिवार का दिन रख लो पर सुनता कौन है ,तीन महीने से काम वाली पैसे बढाने के नाम पर काम छोड़ कर चली गई .मेमसाब 800 रुपये में क्या होता है मह्गीवाडा कितना है और बच्चो के स्कूल की फीस … जैसे काम के बदले मैंने उसके पूरे घर का ठेका ही ले लिया हो !रसोई में घुसते ही मूड ख़राब हो गया रात के झूठे बर्तनो का डेर ..पहले उसे निपटाओ, नहीं…… पहले गुडिया को स्कूल के लिए रवाना करू फिर इनमे हाथ डालु.जैसे तैसे गुडिया का टिफिन तैयार कर विदा किया !इतने में पति महाशय .चाय तो पिला दे बहुत थक गया रात को …..सुनकर मन में गुस्से की लहर सी उठी ..जैसे सारा काम तो खुद ने किया हो ….चाय थमा कर बाकि काम निपटने में लग गई .घडी की तरफ नज़र उठी 9 बज रहे थे ऑफिस जाना है नाश्ता बनाऊ.…पति महोदय तल्खी से बोले नाश्ता अभी ?मुझे ऑफिस जाना है देर हो जाएगी …तुम चाहती हो निगल लू नाश्ता …नहीं करना अभी !चुपचाप खाना बना कर रखा और तैयार होकर ऑफिस निकल गई .सारा दिन थकान ,नींद और पतिदेव की तल्खी याद आती रही ,कभी कदर नहीं है कि ऑफिस और घर के बीच मै भी थक जाती हु! शाम को घर आते ही बच्चे ..मम्मा भूख लगी है उनके सर पर हाथ फेरा और उनके लिए सेंडविच बनाए लगी .इतने में पति महाशय का आगमन भी हो गया ,दो कप चाय बनाई और साथ में आकर बैठ गई बिना कुछ कहे चाय का कप उनके हाथ में दिया दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला !रात का खाना बना कर डिनर टेबल पर रखा और वापिस रसोई की तरफ मुड़ी कान टेबल की और लगे थे ..अब क्या बम फूटेगा ….इतनी देर में जोर से चिल्लाने की आवाज़ आई —–-इतना भी कोई गरम खाना लगाता है क्या !बच्चे मुह पर हाथ रखे अपनी हंसी रोक रहे थे .पापा खाना तो गरम है पर आप को ठंडा करके मुह में डालना था ना!.मुझे याद आया अभी कुछ दिन पहले रात को खाना लगाने लगी तो फोने आया दुबई से मेरा बड़ा बेटा ऑनलाइन था मेरे पति देव कुछ देर बात करके ..अब अपनी माँ से बात कर ले कहकर उठ गए क्यूंकि उनके खाने और सोने का टाइम हो रहा था ,मैंने गुडिया को कहाबेटा खाना लगा जितने में मै आ रही हु ,और बेटे से कहा कि अब मै जा रही हु पापा को कहाँ खिलाना है हम बाद में या कल बात करेंगे .इतनी देर में मेरी बेटी जो मात्र दस साल कि है उसने खाना जैसा रखा था उठाकर टेबल पर लगा दिया ,देखा पति देव का परा सातवे आसमान पर ...घर में ठीक से गरम खाना भी नसीब नहीं होता साईट पर होते है तो कम से कम हेल्पर गरम खाना तो खिलाते है दिल ही दिल में सोचा घर में कलह मचाने से तो अच्छा है साईट पर ही रहो ना !प्रत्यक्ष में बोली लाओ गरम करके लाती हु ,कोई जरुरत नहीं ऐसे ही निगल लूँगा .….रोज़ खाने के समय पर यही नाटक ..कभी नमक कम है कभी ज्यादा है .कभी मिर्च ज्यादा कभी तरी ज्यादा बस रोज़ के नाटक और फिर रोज का रटा रटाया डायलोग तुम करती क्या हो सारा दिन ?लगता है जहा रिश्तो में समझ ना हो वहा जिन्दगी बेकार ही लगती है ,आपका क्या कहना है ?
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