रावण
दो दिन बाद दशहरा है भगवान राम की लंका के राजा रावण की विजय की स्मृति में देशभर में किसी न किसी रूप में दशहरा पर्व मनाया जाता है,!दशहरा बार-बार यही याद दिलाता है कि यदि रावण की तरह अहंकारी हो तो जलना निश्चित है।देशभर में दशहरे के दिन रावण का पुतला दहन कर लोग एक दूसरे को विजय की बधाई देते हैं। इसी दिन राम ने रावण का वध किया था इसीलिए इसे विजयादशमी भी कहते हैं। कोई भी पिता अपने बेटे का नाम रावण नहीं रखना चाहता, क्योंकि रावण को बुराई का प्रतीक मानकर सेकड़ों सालों से उसका पुतला दहन किया जाता रहा है।रावण का पुतला जलाने की प्रथा कब और कैसे शुरू हुई यह तो हम नहीं जानते, लेकिन रावण का पुतला जलाना कितना उचित-अनुचित है! यह विचारणीय है !
दानववंशीय योद्धाओं में विश्व विख्यात दुन्दुभि के काल में रावण हुआ। रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि थे। ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य और पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की चार संतानों में रावण अग्रज था। इस प्रकार वह ब्रह्माजी का वंशज था! ऋषि विश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री इडविडा से विवाह किया था। इडविडा ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम कुबेर और विभीषण था। विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकरण और सूर्पणखा का जन्म हुआ।कुबेर रावण का सौतेला भाई था। कुबेर धनपति था। कुबेर ने लंका पर राज कर उसका विस्तार किया था। रावण ने कुबेर से लंका को हड़पकर उस पर अपना शासन कायम किया। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।रावण में कुछ अवगुण जरूर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि हम रामायण के प्रसंगों को बारीकी से पढें, तो रावण न केवल महाबलशाली था, बल्कि बुद्धिमान भी था। फिर उसे सम्मान क्यों नहीं दिया जाता? कहा जाता है कि वह अहंकारी था।(पराक्रम और ज्ञान इंसान को अहंकारी बना ही देता है )
सुंबा राज्य के राजा, वास्तुकार और इंजीनियर मयदानव ने रावण के पराक्रम से प्रभावित होकर अपनी परम रूपवान पाल्य पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण से कर दिया था!ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमृत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान माँगा लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है। रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी। ‘रावण संहिता’ में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है।
वह तपस्वी भी था। रावण ने कठोर तपस्या के बल पर ही दस सिर पाए थे!जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को प्रतिनारायण कहा गया है।
रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकारकंब ने उसे सद्चरित्र कहा है।(यदि सद्चरित्र नहीं होता तो सीता हरण कर उसकी अस्मिता भंग करने का दोषी होता )उसके यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने शिव ताण्डव स्त्रोत्मकी। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओंपर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जडी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।महाराष्ट्र के अमरावती और गढचिरौलीजिले में कोरकू और गोंड आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व फागुन के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा होती है।यदि राम और रावण की तुलना की जाये तो राम योग्य पुरुष थे परन्तु लंकापति रावण ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता तंत्र-मंत्र, सिद्धि और दूसरी कई गूढ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावा, उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं, जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिककार्य संपन्न किए। रावण संहिता में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड से भी अधिक शिवलिंगोंकी स्थापना करवाई थी।
यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने शिव ताण्डव स्त्रोत्मकी। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओंपर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जडी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
दानववंशीय योद्धाओं में विश्व विख्यात दुन्दुभि के काल में रावण हुआ। रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि थे। ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य और पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की चार संतानों में रावण अग्रज था। इस प्रकार वह ब्रह्माजी का वंशज था! ऋषि विश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री इडविडा से विवाह किया था। इडविडा ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम कुबेर और विभीषण था। विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकरण और सूर्पणखा का जन्म हुआ।कुबेर रावण का सौतेला भाई था। कुबेर धनपति था। कुबेर ने लंका पर राज कर उसका विस्तार किया था। रावण ने कुबेर से लंका को हड़पकर उस पर अपना शासन कायम किया। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।रावण में कुछ अवगुण जरूर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि हम रामायण के प्रसंगों को बारीकी से पढें, तो रावण न केवल महाबलशाली था, बल्कि बुद्धिमान भी था। फिर उसे सम्मान क्यों नहीं दिया जाता? कहा जाता है कि वह अहंकारी था।(पराक्रम और ज्ञान इंसान को अहंकारी बना ही देता है )
सुंबा राज्य के राजा, वास्तुकार और इंजीनियर मयदानव ने रावण के पराक्रम से प्रभावित होकर अपनी परम रूपवान पाल्य पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण से कर दिया था!ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमृत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान माँगा लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है। रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी। ‘रावण संहिता’ में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है।
वह तपस्वी भी था। रावण ने कठोर तपस्या के बल पर ही दस सिर पाए थे!जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को प्रतिनारायण कहा गया है।
रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकारकंब ने उसे सद्चरित्र कहा है।(यदि सद्चरित्र नहीं होता तो सीता हरण कर उसकी अस्मिता भंग करने का दोषी होता )उसके यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने शिव ताण्डव स्त्रोत्मकी। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओंपर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जडी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।महाराष्ट्र के अमरावती और गढचिरौलीजिले में कोरकू और गोंड आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व फागुन के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा होती है।यदि राम और रावण की तुलना की जाये तो राम योग्य पुरुष थे परन्तु लंकापति रावण ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता तंत्र-मंत्र, सिद्धि और दूसरी कई गूढ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावा, उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं, जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिककार्य संपन्न किए। रावण संहिता में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड से भी अधिक शिवलिंगोंकी स्थापना करवाई थी।
यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने शिव ताण्डव स्त्रोत्मकी। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओंपर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जडी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
लेकिन इन सबके बावजूद रावण की सीता हरण की एक गलती ने उसे ऐतिहासिक खलनायक बना दिया ……और राम को देवता की गद्दी पर विराजमान कर दिया !.लेकिन अगर देखा जाये तो क्या वो गलती थी .लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक काट दी थी, जो रावण की बहन थी। इसी कारण रावण ने सीता का हरण कर लिया था !क्या एक स्वाभिमानी भाई की नज़र के नज़रिए से देखा जाये तो रावण अपनी जगह सही था शायद कोई भी बहन नहीं चाहेगी कि उसके अपमान का बदला लेने में उसका भाई इतना सक्षम होना ही चाहिए जिस पर वो गर्व कर सके ..क्या आज कोई भी स्त्री राम जैसे पति का वरण करना चाहेगी जो अपने जीवन का लम्बा समय पति के साथ वनवास का भोगने के बावजूद किसी की बातो में आकर गर्भवती अवस्था में उसका परित्याग कर दे ?
आज उसी रावण को एक बार मारने के बाद रोज़ रोज़ मार कर उत्सव मनाया जाता है
दुख का विषय है कि आज हम चाहे कितने ही रावण जला लें लेकिन समाज में कुसंस्कार और अमर्यादा के रावण रोज पनप रहे हैं। सीता के हरण पर रावण का वध करने और उत्सव मानाने वाले देश की कितनी सीताये रोज़ किसी न किसी रावण के हाथो बेइज्जत हो रही है,कभी गुवहाटी में सरे राह रावणों के बीच अपमानित होती है कभी दिल्ली में किसी सड़क पर दौड़ती बंद कार में .! देश में असली रावण तो आजाद घूम रहे है और उनके पुतले जलाकर किस बात के उत्सव मनाये जा रहे है ? दशहरे के नाम पर लाखो रूपये फूंके जा रहे है !!रावण ने जो किया वो एक स्वाभिमानी भाई की तरह एक भाई होने का फ़र्ज़ निभाया !लेकिन क्या आज कोई राम है जो देश की लुटती हुई सीताओ को बचा सके !
यही नहीं देश के सत्ता के दलाल किसी रावण से कम है ?.जो देश की हर अच्छाई का अपहरण कर रहे है उनका वध करने के लिए कोई राम क्यों पैदा नहीं हो रहा …..?.
Read Comments