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एफ.डी.आई.

मुझे याद आते है
मुझे याद आते है
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आजादी देश को मिली है या कांग्रेस को ?
किसी भी देश पर शासन करना हो तो इसको पहले आर्थिक तरीके गुलाम बनाया जाता हे.पहले की तरह ये देश पर शासन नहीं कर सकते तो अब इन्होने ये रास्ता अपनाया हे देश को आर्थिक गुलाम बनाने का.आखिर आज़ादी के ६० साल के बाद भी देश का इतना विकास नहीं कर पाए की हमे आज भी विदेशी रुपयों की जरुरत पड़ रही हे .सरकार देश के हितों को दरकिनार कर भारत को आर्थिक गुलामी की ओर धकेल रही है! देश में महंगाई चरम पर है। उघोग विकास दर ठहरी हुई है। विनिवेश रुका हुआ है ।राजस्व का जुगाड़ जितना होना चाहिये वह हो नहीं पा रहा है देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी या धन की कमी नहीं भ्रष्टाचार है ! 75 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। और इसी बीपीएल के नाम पर जारी होने वाले 30 हजार करोड़ के अन्न को भी बीच में लूट लिया जाता है। और यह लूट अपने ही देश के नेता,नौकरशाह और राशन दुकानदार करते हैं। फिर विदेशी कंपनिया आयेगी तो क्या करेंगी। यह अगर सरकार नहीं जानती तो वाकई आजादी देश को नहीं सत्ताधारियो को मिली है।

हर छोटा व्यवसायी अपने व्यवसाय को बड़ा करने का सपना देखता है जिससे ज्यादा मुनाफा कमाकर अपना जीवन स्तर सुधार सके चाहे छोटा व्यवसाय हो पर वो उसका मालिक होता है लेकिन सरकार के विदेशी निवेश को अनुमति के निर्णय से ये सभी मालिक नौकर हो जायेंगे जो छोटा मुनाफा भी इनकी जेब में आता था वो विदेशी कम्पनियां  अपनी जेब में डालेंगी और सबसे बड़ी बात ये पैसा देश में भी नहीं रहेगा देश से बाहर जाने का लाइसेंस देकर सरकार देश को दुबारा गुलामी की दलदल में धकेल रही है

किसी भी देश पर शासन करना हो तो इसको पहले आर्थिक तरीके गुलाम बनाया जाता हे.पहले की तरह ये विदेशी देश पर शासन नहीं कर सकते तो अब इन्होने ये रास्ता अपनाया हे देश को आर्थिक गुलाम बनाने का.आखिर आज़ादी के ६० साल के बाद भी देश का इतना विकास नहीं कर पाए की हमे आज भी विदेशी रुपयों की जरुरत पड़ रही हे .सरकार देश के हितों को दरकिनार कर भारत को आर्थिक गुलामी की ओर धकेल रही है! देश में महंगाई चरम पर है। उघोग विकास दर ठहरी हुई है। विनिवेश रुका हुआ है ।राजस्व का जुगाड़ जितना होना चाहिये वह हो नहीं पा रहा है देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी या धन की कमी नहीं भ्रष्टाचार है ! 75 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। और इसी बीपीएल के नाम पर जारी होने वाले 30 हजार करोड़ के अन्न को भी बीच में लूट लिया जाता है। और यह लूट अपने ही देश के नेता,नौकरशाह और राशन दुकानदार करते हैं। फिर विदेशी कंपनिया आयेगी तो क्या करेंगी। यह अगर सरकार नहीं जानती तो वाकई आजादी देश को नहीं सत्ताधारियो को मिली है।

Texan-accidentally-fires-shot-at-Walmartकुछ भी चाहे कैसे भी हालत रहे हो कम से कम  देश का पैसा देश में ही रह जाता था लेकिन यहाँ तो देश का पैसा भर भर कर बाहर ले जाने का लाइसेंस जारी हो रहा  है यदि इन विदेशी कम्पनियों को लूट का लाइसैंस मिलेगा तभी देश के बिचौलिए नेताओं को अधिकतम दलाली भी मिलेगी। यही कारण है कि वालमार्ट जैसी विश्व की ख्यातिप्राप्त रिटेल कम्पनी ने भारत में खुदरा बाजार में निवेश के निर्णय को लागू करवाने के लिए करोडो रुपए खर्च किए!तो ये करोडो रुपये किसको दिए गए ?भारत में पिछले दो सालों से जब लगातार खाद्य पदार्थों के दाम बढाये जा रहे थे क्या ये भी एक साजिश  थी?अब हर विरोध को दरकिनार कर सरकार ने खुदरा बाजार में विदेशी निवेश का निर्णय लागू कर दिया।अमरीका की यह कम्पनी भारत में किसानों और कर्मचारियों के शोषण के साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आड में देश की घरेलू अर्थव्यवस्था को चौपट करने का काम करेगी। इस कम्पनी का मुख्य ध्येय ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना है। क्या वालमार्ट कम्पनी ने अपने स्टोर खोलने और मल्टी ब्रांड खुदरा निवेश में 51 फीसदी और एकल ब्रांड में 100 फीसदी प्रत्यक्ष की अनुमति के लिए भारत में स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत दी ?जिससे उनके लिए कार्य आसान हो सके  ,थोड़े खर्चे में जयादा कमाई की राह खुल सके !

1120_walmart_630x420पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने कहा कि देश में वालमार्ट की जरूरत नहीं है और एफडीआई रिटेल के मामले में देश को गुमराह करने की कोशिश हो रही है वालमार्ट स्टोर के बारे में जानकारी के मुताबिक जहा जहा ये स्टोर होता हे वो पहले  अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी को ख़तम करता हे.

वालमार्ट ज़्यादातर चीज़े चाइना से इम्पोर्ट करता हे और सभी को मालूम हे चाइना की चीज़े केसी होती हे.घटिया किस्म की चीज़े बेच के मुनाफा अपने देश में ले जाना चाहते हे.और भारत के करोडो लोगो को बेरोजगार और दरिद्र बनाना चाहते हे इसमें केंद्र सरकार पूरी तरह अमेरिका को सहयोग कर रही हे.!!

या फिर सरकार यह भी समझ पाती कि जब मुनाफा ही पूरी दुनिया में बाजार व्यवस्था का मंत्र है तो दुनिया के जिस देश या बाजार से माल सस्ता मिलेगा वहीं से माल खरीद कर भारत में भी बेचा जायेगा।

छोटे और मझोले व्यापारियों से लेकर किसान और परचून की दुकान चलाने वालो को अगर विदेशी कंपनियों के हवाले करने की सोच को सरकार सही कह रही है तो क्या सरकार वाकई मुनाफा बनाती कंपनियों के उस चक्र को नहीं समझती है जिसमें पहले खुद पर निर्भर करना और बाद में निर्भरता के आसरे गुलाम बनाना होता है सरकार ने अमेरिका की चमचागिरी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्वामीभक्ति की अनूठी मिसाल पेश करने में कोई परहेज़ नहीं की है

युवक कांग्रेस के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा कि रिटेल सेक्टर में एफडीआई का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया गया है. उन्होंने एफडीआई के फैसले को देशहित में बताते हुए कहा कि इससे किसानों को उचित दाम मिलेंगे.इससे छोटे-बड़े कारोबारियों को भी फायदा होगा और रोजगार भी बढ़ेगा.!खुदरा में एफडीआई के पक्ष में कांग्रेस नेताओं का यह तर्क भी निराधार साबित हो रहा है कि वालमार्ट जैसी कम्पनियों के आने से रोजगार बढेगा और उपभोक्ताओं को सुविधाएं मिलेंगी। उन्होंने कहा कि खुद अमरीका में सौ से ज्यादा स्टोरों के बाहर वालमार्ट के कर्मचारी सामान्य सुविधाओं को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

खुदरा बाजार में एफडीआई की मंजूदी देकर सरकार ने छोटे-मझोले व्यापारियों, किसानों, दुकानदारों, फेरीवालों और खुदरा व्यापार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े और रोजी-रोटी कमाने वाले करोड़ों लोगों के पेट पर सीधे लात मारने का मसौदा तैयार  किया है. गौरतलब है कि देश का रिटेल सेक्टर में 90 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी छोटे दुकानदारों की है.ऐसा ही खेल नासिक में करीब 60 हजार अंगूर उगाने वाले किसानों को वाइन के लिये अंगूर उगाने के बदले तिगुना मुनाफा देने का खेल संयोग से 2004 में ही शुरु हुआ। और 2007-08 में वाइन कंपनियों को खुद को घाटे में बताकर किसानों से अंगूर लेना ही बंद कर दिया।

किसानों के सामने संकट आया क्योंकि जमीन दुबारा बाजार में बेचे जाने वाले अंगूर को उगा नहीं सकती थीं और वाइन वाले अंगूर का कोई खरीददार नहीं था। तो जमीन ही वाइन मालिकों को बेचनी पड़ी। अब वहां अपनी ही जमीन पर किसान मजदूर बन कर वाइन के लिये अंगूर की खेती करता है और वाइन इंडस्ट्री मुनाफे में चल रही है। क्या हमारे देश की सरकार ऐसे  हालत देखकर भी सबक नहीं लेती  या इन्हें किसी दर्द से कोई मतलब नहीं है !

वाणिज्य मंत्री द्वारा यह कहना कि वालमार्ट को 30 प्रतिशत खरीद स्थानीय बाजार से करनी होगी, वालमार्ट तथा अन्यों द्वारा अपनाई जा रही वास्तविक नीतियों को देखते हुए असम्भव है। यह वैश्विक स्तर पर सर्वविदित है कि वालमार्ट में 90 प्रतिशत उत्पाद चीन से मंगवाए जाते हैं।चीन के सामान से देश के बाजार पट जाने का खतरा इसलिए मंडरा रहा है क्योंकि वालमार्ट जैसी रिटेल कंपनियां वहीं माल बनवाती हैं। वहां कड़े श्रम कानून नहीं हैं और बेहद सस्ते में माल बन जाता है। और उसकी सस्ते मॉल को महंगे दामों में बेच कर लाभ कमाया जायेगा ! सस्ती आयातित चीनी वस्तुएं भारत के स्थानीय उद्योग को तबाह कर देंगी

पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा गांधीवादी अर्थशास्त्री प्रो.जय नारायण शर्मा तथा अर्थशास्त्री एवं गांधीवादी डा. अनिल अरोडा ने कहा कि अमेरिका, यूरोप और चीन की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है और वे जानते हैं कि इस हालात में भारत उनके लिए बडा बाजार है।

खुदरा बाजार में विदेशी निवेश और वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियों की बडी दुकानें खुलने से निश्चित तौर पर कुछ समय के लिए किसानों और आम आदमी को लाभ होगा लेकिन दीर्घकाल में ये बड़ी कंपनियां शहरों तक सीमित नहीं रहेंगी तब छोटे दुकानदारों को सडक पर आना पडेगा।खुदरा बाजार में संगठित वर्ग और विदेशी कंपनियों के निवेश की अनुमति से छोटे स्तर के व्यवसायी बुरी तरह प्रभावित होंगे और उनके लिए बाजार में अपना अस्तित्व कायम रख पाना कठिन होगा.

सरकार के इस फैसले के साथ एक सवाल उभरता है कि उन करोड़ों खुदरा व्यापारियों का क्या होगा जो अपनी छोटी-छोटी पूंजी के साथ किराना का व्यवसाय कर अपनी आजीविका चला रहें है.प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी एफडीआई के फायदे गिनाते हुए कहा कि मैं इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हूं कि एफडीआई से हमारे देश किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा होगा। शायद वो भूल गए  जब करीब डेढ़ दशक पहले की पंजाब की उस घटना की चर्चा जरूरी है जब पंजाब सरकार ने एक विदेशी कंपनी से समझौते के बाद राज्य के किसानों को टमाटर बोने के लिए प्रोत्साहित किया था. उस समय कंपनी ने वादा किया था कि वह किसानों से उचित मूल्य पर टमाटर खऱीदेगी और अपनी प्रोसेसिंग यूनिट में उससे केचप और दूसरी चीजें तैयार करेगी, लेकिन जब टमाटर का रिकार्ड उत्पादन होने लगा तो कंपनी तीस पैसे प्रति किलो की दर से टमाटर मांगने लगी. जिससे क्रुद्ध होकर किसानों ने कंपनी को टमाटर बेचने की बजाय सड़कों पर ही फैला दिए थे

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किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा होने का तर्क देने वाले भूल जाते हैं कि देश में जिन करोड़ों लोगों की जीविका गली-मुहल्ले में रेहड़ी-पटरी लगाकर सब्जी-भाजी बेचकर चलती है या गली के मुहाने की दुकान के सहारे रोजी-रोटी चल रही है, रिटेल चेन बढ़ने के बाद उन ४.५ से ५ करोड लोगों का क्या होगा.सरकार के इस फैसले के साथ एक सवाल उभरता है कि उन करोड़ों खुदरा व्यापारियों का क्या होगा जो अपनी छोटी-छोटी पूंजी के साथ किराना का व्यवसाय कर अपनी आजीविका चला रहें है

देश में वर्तमान में थोक व्यापार में 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत है वहीं सिंगल ब्रांड रिटेलिंग में 51 फीसदी एफडीआई की अनुमति है

सरकार ने खुदरा बाजार में एफडीआई को मंजूदी दे दी है आने वाले दिनों में वालमार्ट, टेस्को, केयर फोर, मेट्रो एजी और शक्चार्ज अंतर्नेमेंस जैसी तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपने मेगा स्टोर खोल सकेंगी.!

फिर रिटेल क्षेत्र कृषि के बाद अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र है. जीडीपी में भले ही खुदरा व्यापार का योगदान लगभग आठ फीसदी के आसपास है लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है.एक उदहारण -कारपोरेट जगत के पेप्सी तथा कोकाकोला जैसी बडी दुकानों ने देश के स्थानीय बाजार से स्थानीय ब्रांड के शीतल पेय गायब कर दिए। कोला तथा पेप्सी आज दूरदराज इलाकों में भी उपलब्ध हैं जहां पानी भले ही नहीं मिले लेकिन यह पेय पदार्थ जररी मिलेंगे। इन्होंने छोटे पेय निर्माताओं को बाजार से उड़़ा दिया।

वालमार्ट आज बाहर आउटलेट खोलने की बात करती है और भविष्य में ये कंपनियां देश के हर कोने में छा जायेंगी।आज अगर बाहर आउटलेट खोले जाते है तो क्या लोगो को लम्बी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी सरकार उन्हें आउटलेट खोलने की जगह भी उपलब्ध कराएगी वो कहा कराएगी ?

प्रधानमंत्री ने फौरी राहत देने तक ही सोचा है लेकिन कल ये कारपोरेट कंपनियां सरकार से पैसे के दम पर एफडीआई के नियमों में बदलाव करा सकती हैं।

वर्तमान परिस्थितियों में विदेशी निवेश आवश्यक है परन्तु राष्ट्रीय हित का विचार करके यह निर्णय करना होगा कि किस क्षेत्र में कितना और किस तरह विदेशी निवेश किया जाए!भारत में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां विदेशी निवेश लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। सेवा क्षेत्र (व्यापार, होटल, परिवहन, संचार, वित्त, बीमा, रियल एस्टेट आदि), कम्प्यूटर क्षेत्र, निर्माण, दूरसंचार, आटो मोबाइल, ऊर्जा क्षेत्र और खनन ऐसे क्षेत्र हैं जहां विदेशी निवेश देश के लिए फायदेमंद साबित होगा। भारत का हवाई क्षेत्र सिसक रहा है। हवाई क्षेत्र में अधिक निवेश चाहिए। हवाई क्षेत्र में अधिक निवेश का निर्णय सरकार क्यों नहीं ले रही। भारत इस वर्ष 2,00,000 मैगावाट ऊर्जा उत्पादित करना चाहता है। यह भी विदेशी निवेश से ही संभव होगा। लौह-अयस्क विदेशों में जाता है और स्टील बनकर भारत में वापस आता है।

हमारे पास उच्च टैक्नोलॉजी नहीं है, इस क्षेत्र में भी निवेश की अति आवश्यकता है। सुरक्षा के क्षेत्र में हम प्रति वर्ष अरबों रुपए के शस्त्र विदेशों से खरीदते हैं। बहुत-सी भारतीय कम्पनियां भारत में ही शस्त्र बनाती हैं। देश के विकास के लिए ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहां विदेशी निवेश लाभदायक सिद्ध हो सकता है और नि:संदेह विदेशी कम्पनियां उचित कमाई कर सकेंगी।

खुदरा व्यापार में भीमकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश से हमारे देश के आतंरिक व्यापार, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था के ताने-बाने को गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा.

आप ही सोचिये  अनर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जी  के रूप में देश का अर्थशास्त्र कितना सुधरा या कितना और बिगड़ेगा ?

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