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जनता की चाहत

मुझे याद आते है
मुझे याद आते है
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देश के लोकसभा चुनाव के दौर में पार्टी प्रचार का तरीका बदल गया है !

प्रत्येक दल का दुसरे दल पर आरोप प्रत्यारोप ,अमर्यादित भाषा का प्रयोग , निजी जीवन के निजी पहलुओ पर  ताक झांक , चरित्र हनन के

प्रयास  ,व्यक्तिगत छवि पर सीधा हमला और व्यंग बाण…लगता ही नहीं ये देश के लोक सभा चुनाव प्रचार चल रहा है ,ये तो कोई

व्यक्तिगत युद्ध जैसा माहौल है !लगता ही नहीं   किसी के पास देश के विकास ,आम जनता की भलाई के लिए कोई सोच है अगर सोच है

केवल प्रतिद्वंदी को नीचे दिखाने की वरिष्ठ नेता ,पढेलिखे सभ्य पद पर आसीन भी अपनी पूरी नीचता  की सबसे निचली  सीढी पर खड़े

दिख रहे है !इन सब के बीच जनता त्रस्त व् संशय में है ,चुनाव परिणाम आने बाकी है ,जनता परिवर्तन की आकांक्षी है !आशा है चुनाव

परिणामो के बाद होने वाला बदलाव सकारात्मक रहे  और देश की दिशा और दशा दोनों सुधरे ,,,यही जनता की चाहत है

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